पारिस्थितिकी और पर्यावरण

हिमालय से हिमाकत का नतीजा हैं हिमनद झीलों का खतरा

नेशनल स्नो एंड आइस डाटा सेंटर की एक रिपोर्ट के मुताबिक हिमनद झीलें तब बनती हैं जब ग्लेशियर पीछे हटता है और पिघलता हुआ पानी ग्लेशियर द्वारा छोड़े गए गड्ढों में भर जाता है। हिमस्खलन और ग्लेशियरों के हिमखंड गिरने से यह झीलें ओवरफ्लो जाती हैं।

मृतप्राय नदी – महाकाली का डेथ वारंट रोकने का प्रयास

कुछ लोग कहते हैं- महाकाली के मरने की रफ्तार भागीरथी और भिलंगना से कई गुना तेज होगी। क्योंकि, यहां प्रतिरोध ना के बराबर है। इसलिए यहां प्रतिरोध की संभावनाओं को तलाशने और इसे ताकतवर बनाने के लिए यह पुस्तिका अहम दस्तावेज साबित होने वाली है। 

ऋषिगंगा और हिमालयी ग्लेशियरों से उपजी आपदा

ऋषिगंगा नदी भी मंदाकिनी नदी की तरह ही हिमाच्छादित पर्वत और उनसे निकले ग्लेशियरों से रिसे पानी को संग्रह करते हुए नदी का स्वरूप पाती है। ऋषिगंगा के जलग्रहण में मंदाकिनी नदी से ज्यादा ग्लेशियर और हिमशिखर हैं।

वनाग्नि से धधकता उत्तराखंड

अरुणाचल के बाद उत्तराखंड के जंगल भारत में सर्वाधिक कार्बन संरक्षण करते हैं। लेकिन हर साल जंगलों में लगने वाली आग से, इस संरक्षित कार्बन का एक हिस्सा तत्काल ही वापस उत्सर्जित हो जाता है। साल दर साल जंगलों में आग की घटनाएं चिंताजनक होती जा रही हैं।

हिमालय से एक पत्र – इंदिरा गांधी के नाम

पर्यावरण,पारिस्थितिकी के साथ-साथ आज जलवायु परिवर्तन सम्बन्धी बहस के इस दौर में सस्टेनेबल मिलेनियम डेवलपमेंट

भागीरथी घाटी में जल-विद्युत परियोजनायें और स्थानीय धारणा

भारतीय हिमालयी क्षेत्र में जल-विद्युत परियोजनाओं का निर्माण विवादास्पद रहा है। ऐसी परियोजनाओं को लेकर अब तक जितने भी अध्ययन सामने आये हैं, उनमें से अधिकांश सामाजिक ताने-बाने में परिवर्तन, जनसांख्यिकी बदलाव, वनों, जैव विविधता, व कृषि भूमि के नुकसान के साथ-साथ स्थानीय लोगों एवं अन्य दूसरे हितधारकों की धारणाओं पर केन्द्रित रहे है।

पहाड़ के बारे में कुछ!