पहाड़ हिमालय तथा पहाड़ों सम्बंधी अध्ययन में लगी गैर सरकारी, अव्यवसायिक तथा सदस्यों के अवैतनिक सहयोग से चलने वाली संस्था है। एक प्रकार से यह हिमालय, इसके हिस्सों या विरादारों को समग्रता में जानने की कोशिश है। चिपको आन्दोलन की चेतना से जन्मी यह संस्था हिमालय की प्रकृति, संस्कृति, पारिस्थितिकी, इतिहास, आर्थिकी और संसाधनों पर प्रारम्भ से गहरी दिलचस्पी लेती रही है।
पहाड़ द्वारा संकलन-अध्ययन यात्राओं, संगोष्ठियों और पहाड़ प्रदर्शनियों का आयोजन होता है। हिमालयी समाज, संस्कृति, पर्यावरण और इतिहास सहित तमाम पक्षों पर केन्द्रित सालाना ‘पहाड़’ का प्रकाशन होता है। हिमालय की समस्याओं पर पुस्तिकायें प्रकाशित की जाती हैं। हिमालय तथा पहाड़ों सम्बंधी विषयों पर राहुल सांकृत्यायन तथा गोपी-मोहन-झूसिया स्मारक व्याख्यान आयोजित किये जाते हैं। पहाड़ के 21 अंक, दर्जनों पुस्तिकायें, पोस्टर, नक्शे; हिन्दी, अंग्रेजी, गढ़वाली, कुमाउंनी तथा नेपाली में अनेक पुस्तक-पुस्तिकायें अब तक प्रकाशित हो चुकी हैं।
पहाड़ अध्ययन यात्राओं का आयोजन करता है। 1974, 1984, 1994, 2004 तथा 2014 का अस्कोट-आराकोट अभियान पहाड़ का सबसे महत्वपूर्ण और हर दशक में होने वाला यात्रा अभियान है। इसके अलावा हिमालय के विविध क्षेत्रों, आपदा प्रभावित क्षेत्रों और उच्च हिमालय में भी अध्ययन यात्राएँ होती रही हैं। इन यात्राओं से पहाड़ के सदस्यों तथा यात्रा में भाग लेने वाले अन्य सदस्यों को हिमालय की प्रकृति और जीवन का यथार्थ देखने और समझने का मौका मिलता है। पहाड़ के अनेक सदस्यों ने नेपाल, भूटान, तिब्बत तथा दुनिया के अन्य पहाड़ी क्षेत्रों की यात्राएँ की हैं। जिन्हें वे लेखों तथा व्याख्यानों के माध्यम से लोगों के सामने प्रस्तुत करते हैं।
सामाजिक आंदोलनों में हिस्सेदारी और सहयोग भी पहाड़ का एक कार्य रहा है। उस ज्वलन्त मुद्दे पर अध्ययन कर समाज और सरकार के सामने लाना पहाड़ का लक्ष्य रहता आया है। वन आन्दोलन, नशा विरोधी आन्दोलन, टिहरी बांध या खनन विरोधी आन्दोलन, राज्य आन्दोलन तथा गैरसैण राजधानी आन्दोलन सहित उत्तराखण्ड के विभिन्न आन्दोलनों के दौर में पहाड़ ने यह किया।
पहाड़ तरह-तरह के अन्य आयोजन भी करता है। जैसे – महत्वपूर्ण प्रतिभाओं और घटनाओं की शताब्दियाँ तथा स्मृति दिवस आदि मनाना। पहाड़ के आयोजन जब भी किसी जगह होते हैं तो वे सिर्फ एक आयोजन न होकर तमाम शिक्षा संस्थाओं में अनेक आयोजनों का रूप ले लेते हैं। विद्यार्थीयों तथा युवाओं के बीच अधिक से अधिक कार्यक्रम करना पहाड़ का अभीष्ठ रहा है। पहाड़ ने बद्रीदत्त पाण्डे, चन्द्र सिंह गढ़वाली, जयानन्द भारती, भैरवदत्त पाण्डे, भैरवदत्त सनवाल, लौरी बेकर, मोहन सिंह रीठागाड़ी, देवीदत्त पन्त, चन्द्र कुँवर बत्र्वाल तथा मनोहर लाल श्रीमन के जन्म शताब्दी समारोहों का आयोजन किया और अनेक प्रकाशन भी निकाले। गांधी के 150 साल और उनकी उत्तराखण्ड यात्रा के 90 साल भी हमने अपनी तरह से याद किये।
तीन दशकों तक इसी तरह बिना किसी सरकारी, गैर-सरकारी आर्थिक सहयोग के सिर्फ पहाड़ के सक्रिय सदस्यों, शुभचिंतकों और विभिन्न स्थानों पर कार्यरत पहाड़ के सदस्यों के महत्वपूर्ण योगदान से सक्रिय रहने के बाद अब इसे पहाड़ फाउण्डेशन के नाम से एक ट्रस्ट का रूप दिया गया है। ताकि नई प्रतिभायें इस कार्य को और अधिक गहराई और ऊंचाई दे सके।
पहाड़ की टीम इस कोशिश को अकादमिक-बौद्धिक एकालाप के स्थान पर जनचेतना से प्रखर होने वाला और जन चेतना को प्रखर करने वाला तथा पहाड़ों के बाबत वैज्ञानिक समझ विकसित करने वाला कार्यकलाप बनाना चाहती है। जिन्हें यह काम विश्वसनीय और जरूरी लगे, वे कृपाकर इसे आगे बढ़ाने आगे आयें।
पहाड़ के संपादक व संस्थापक शेखर पाठक प्रसिद्ध इतिहासकार व लेखक हैं। वे कुमाऊँ विश्वविध्यालय में इतिहास के प्रोफेसर के रूप में कार्यरत थे। वे नेहरू मेमोरियल म्यूज़ीयम, नई दिल्ली व इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ एडवांस्ड स्टडी, शिमला के फ़ेलो भी रहे हैं। पहाड़ों के गहन जानकार, उन्होंने पहाड़ों को समझने से लिए कई यात्राएँ की एयर लगभग सभी असकोट आरकोट यात्राओं में भागीदारी की।
इस वर्ष यात्रा कब होगी?
सादर नमस्कार,
आपकी वेबसाइट काफी अच्छी लगती हैं। बस इतना कहना चाहता हूं की कृपया आप लोगों की असकोट आराकोट २०२४ यात्रा के बारे में भी कुछ जानकारी साझा करें।