यात्रा प्रारम्भ – 25 मई, 2024, 11 बजे सुबह, पांगू
यात्रा समाप्ति – 8 जुलाई, 2024, आराकोट
आगामी 25 मई 2024 से आरंभ होने वाला अस्कोट-आराकोट अभियान छठी यात्रा है। यह अभियान का पचासवां साल भी है। इस बार अभियान की केंद्रीय विषयवस्तु या थीम स्रोत से संगम रखी गई है ताकि नदियों से समाज के रिश्ते को गहराई से समझा जा सके और जलागमों के मिजाज को समग्रता में जाना जा सके।
अभियान में उत्तराखण्ड की विभिन्न संस्थाओं के कार्यकर्ता; विभिन्न विश्वविद्यालयों के शोधार्थी और प्राध्यापक, उत्तराखंड-हिमाचल के इंटर कालेजों, हाईस्कूलों के विद्यार्थी और शिक्षक, पत्रकार, लेखक, रंगकर्मी, सामाजिक कार्यकर्ताओं के अलावा देश के अन्य हिमालय प्रेमी भी शिरकत करेंगे। इस बार मुख्य यात्रा के साथ-साथ अनेक टोलियों में अनेक दूसरे मार्गों में भी यात्रा सम्पन्न होगी।
इस यात्रा में यह समझने की कोशिश भी होगी कि पिछले पाँच दशकों में और खास कर राज्य बनने के ढाई दशक बाद उत्तराखण्ड का प्राकृतिक चेहरा-जल जंगल जमीन, खनन, बाँध, सड़क आदि कितना और घटा है? अर्थ व्यवस्था किस बिन्दु पर है? क्या सामाजिक चेतना में कोई बदलाव आया है ? दलित, अल्पसंख्यकों की स्थिति कैसी है? सामाजिक-राजनैतिक चेतना में कितना इजाफा हुआ है? राज्य में आर्थिक और सांस्कृतिक घुसपैठ कितनी बढ़ी है? पलायन का क्या रूप है? गाँव के हाल कितना बदले हैं? शिक्षा, चिकित्सा, सड़क, पानी, शराब तथा महिलाओं-बच्चों सहित पर्वतीय जीवन के अन्य पक्षों की क्या स्थिति है? इन्टरनेट की पहुच कहाँ तक हुई है?
जल, जंगल तथा जमीन के मामले के साथ-साथ अंतर्राष्ट्रीय ऋणों से खड़ी की गयी योजनाओं की भी इस दौरान पड़ताल होगी और विभिन्न संसाधनों को राज्य द्वारा अपने हाथों में ले लिये जाने को गम्भीरता से समझने का प्रयास होगा। नई आर्थिक नीति तथा उदारीकरण के प्रभावों के साथ-साथ उत्तराखण्ड की जैवविविधता तथा पारम्परिक ज्ञान कोजानने की भी कोशिश होगी। माफिया की बढ़ती शक्ति, भ्रष्टाचार तथा सामाजिक अपराध जैसे पक्ष भी देखे जायेंगे। चिपको, नशा नहीं रोजगार दो, हिमालय बचाओ तथा पृथक उत्तराखण्ड राज्य आन्दोलन के प्रभाव तथा उनमें जन हिस्सेदारी के स्वरूप को समझने तथा गैर सरकारी संस्थाओं के योगदान की समीक्षा का प्रयास भी होगा।
इस बार 25 मई से 08 जुलाई 2024 के बीच छठे अस्कोट-आराकोट अभियान का पहला चरण अधिक व्यापक रूप से आयोजित किया जा रहा है। साल के अंतिम महीनों में टनकपुर से डाकपत्थर (तराई-भाबर-दून) यात्रा को अभियान के दूसरे चरण के रूप में आयोजित करने की योजना है।
नया प्रयोग
इस बार के अभियान में कुछ नए मार्गों में यात्रा करने की योजना भी है। कुछ ऐसे मार्गों जिनमें हुई महत्वपूर्ण यात्राओं का विवरण और यात्रावृतांत उपलब्ध हों। जैसे श्वेन त्शांग (ह्वेनसांग) की सातवीं सदी के पूर्वार्ध की कालसी–गोविषाण (काशीपुर) यात्रा, आन्द्रादे आदि जैसुइट पादरियों की 1624 की हरद्वार-माणा-छपरांग यात्रा, डैनियल चाचा-भतीजे की 1789 की नजीबाबाद से प्रारम्भ गढ़वाल यात्रा, थामस हार्डविक की 1796 की कोटद्वार-श्रीनगर यात्रा, बिशप हेबर की 1824 की कुमाऊँ यात्रा, पिलग्रिम (पी. बैरन) की 1839-1842 की उत्तराखण्ड यात्रा, पण्डित नैनसिंह रावत तथा स्वामी विवेकानन्द के कुछ यात्रा मार्ग, लार्ड कर्जन की 1903 की नैनीताल-रामणी (इसे कर्जन मार्ग कहा जाता है) यात्रा तथा भूगर्भशास्त्री हीम तथा गानसीर की 1936 की यात्रा मार्गों मेँ यात्रा करना। इनमें से कई हिस्से मुख्य अभियान का हिस्सा होंगे ही।
अभियान सम्पन्न होने के बाद – यात्रा के बाद अभियान में हिस्सेदारी करने वाले सभी सदस्यों का सम्मेलन आयोजित करने की योजना बनाई जा रही है। पदयात्रियों से यह अपेक्षा है की वे इस सम्मेलन में शब्दों और लिखित में अपने-अपने अनुभव रखेंगे। हर सदस्य अपनी रपट, फोटो, स्लाईड्स प्रस्तुत करेगा। अतः हर सदस्य को व्यक्तिगत डायरी, नोट्स, स्केच, फोटो के माध्यम से उत्तराखण्ड की वास्तविकता प्रस्तुत करने हेतु भी तैयारी करनी होगी।
पहाड़ ने एक सर्वेक्षण प्रश्नावली तैयार की है। इसे हम ऑनलाइन भी उपलब्ध करने की कोशिश कर रहे हैं ताकि विभिन्न गाँवों तथा क्षेत्रों का सर्वेक्षण किया जा सके। पिछले पचास सालों की आँखनदेखी से हम एक जनोपयोगी तथा क्षेत्रोपयोगी रपट तैयार कर सकेंगे।
‘आस्ते भग आसीनस्य ऊर्ध्वस्टिष्ठति तिष्ठतः
ऐतरेय ब्राह्मण 3/1/3
शेते निपद्यमानस्य चरति चरतो भगः
चरैवेति चरैवेति !’
(बैठे का भाग्य बैठा। खड़े का भाग्य खड़ा। सोने वाले का भाग्य सोया और भ्रमणशील सदा आगे बढ़ता है। अतः चलते रहो।)
कौन इस अभियान का हिस्सा हो सकता है
विभिन्न अभियान दलों में पूरी या आंशिक हिस्सेदारी के लिए हर उस साथी का स्वागत है, जो पहाड़ की जिन्दगी को जानने और उसमें सकारात्मक परिवर्तन करने या ठहराव तोड़ने में रुचि रखता हो। वह जनचेतना के विकास को महत्व देता हो।यह ध्यान रखा जाना चाहिए की यह यात्रा पहाड़ों मेँ मनोरंजन अथवा सैर-सपाटे के लिए नहीं है। पहले की तरह इस बार भी यात्रा को अधिकतम जनाधारित बनाने का प्रयास होगा।
पदयात्री के पास क्या-क्या होना जरूरी है? : पहाड़ का कोई भी अभियान प्रोजेक्ट आधारित नहीं होता है। अतः अभियान दल के सदस्य अपने पास पिट्ठू, स्लीपिंग बैग, एक प्लेट, पानी की बोतल, जरूरी कपड़े (कुछ ऊनी भी), डायरी, कापी, कलम अवश्य रखे हो। कैमरा, रिकार्डर, तथा हैंड माइक (चेलेंजर) की व्यवस्था हर दल में हो सके तो अच्छा होगा।
पहाड़ समय-समय पर अन्य यात्राओं के विवरण साझा करता रहेगा। आप पहाड़ की वेबसाइट www.pahar.org में प्रकाशित नई सूचनाओं, यात्रामार्ग के मानचित्र आदि की जानकारी ले सकते हैं।
आइये इस अभियान में हिस्सेदारी करें। अपनी जड़ों की ओर लौटने में हिचक कैसी ?