व्यक्तित्व

रणबीर रावल – एक वैज्ञानिक का असमय जाना

रणबीर बहुत सम्वेदनशील था। नैनीताल के विद्यार्थी काल, पंत संस्थान के वैज्ञानिक और फिर निदेशक के रूप में वह हर बार नये सवालों से रूबरू होता था। मुझे याद है कि अनेक बार एस.पी. सिंह, जयन्ता बन्द्योपाध्याय, हेम पाण्डे, जे.एस. मेहता आदि तमाम मित्रों के साथ हो रही चर्चा के केन्द्र में ये नये आयाम होते थे। जिस तरह वह लगातार पत्राचार करता था, वैज्ञानिकों की दो-तीन पीढ़ियों से बात करता रहता था, उससे भी उसकी कर्मठता का अन्दाज आता था।

प्रो. डी.डी. पन्त – एक रहबर की याद

अंतत: प्रो. डी.डी. पन्त एक बेहतर दुनिया का सपना देखते-देखते इस दुनिया से विदा हो गए। उन जैसे असाधारण जीवन, कर्म, भावनाओं और इरादों को अपनी मामूली कलम से उकेरने के दुस्साहस के बावजूद, हमारा यह प्रयास उनके सानिध्य सुख से उाण होने की एक बचकानी कोशिश भर है।

लारी बेकर – आम लोगों का असाधारण वास्तुविद

आज से कोई 70 वर्ष पूर्व लारी का मन जिस सोर की वादी में रम गया था, वह वास्तव में बेहद सुंदर थी! दूर-दूर तक काश्त किये खेतों के इर्द-गिर्द उतरते पर्वत ढलानों में बस गये छितरे बनैले गाँव, मध्य में छोटा-सा कस्बा और घाटी में दो फलकों में बहती सर्पिल जल धाराएं। यहां की जलवायु, वनस्पतियां और हिमाच्छादित शिखर श्रृंखलाओं के बदलते नजारे लारी को अपने यूरोप के देहात के स्पर्श देते रहे।

मंगलेश दा हैं कहीं हमारे आस-पास

मंगलेश दा के जाने पर पीड़ा ज्यादा ही गहरी और चुभन भरी महसूस हुई। पता नहीं, मैं किस रिश्ते से मंगलेश दा के बारे में सोचता हूँ? अपने कवि के पाठक/श्रोता की हैसियत से या दा के भाई के रूप में या एक गड़बड़ाये जा रहे समाज और देश के एक सह नागरिक के रूप में?

ओड़-बारुड़ि जैसा वो कवि

नैनीताल मेरी नज़रों में आभिजात्य लोगों का ही शहर तो था। डीएसबी में एडमिशन लेने के बाद ऐसे गाढ़े अँग्रेज़ी माहौल में मुझे ठेठ पहाड़ी जुमले ‘भभरि जाने’ का असली एहसास होने लगा। और तब गिरदा प्रकट हुए।

जिन्दगी से भरे जीवन सिंह मेहता

डॉ. जीवन सिंह मेहता वास्तव में वन और वनस्पति विज्ञान के गहरे अध्येता थे। जंगलात विभाग की नौकरी ने उन्हें वन-वनस्पति का प्रत्यक्ष अनुभव भी दिया। इसलिये वे सिर्फ किताबी विद्वान नहीं थे।

सुन्दरलाल बहुगुणा | एक जटिल युग का अन्त

उत्तराखण्ड की सामाजिक-सांस्कृतिक पहचान सबसे ज्यादा सामाजिक कार्यकर्ताओं और सामाजिक आन्दोलनों से ही बनी। इसमें सुन्दरलाल बहुगुणा की महत्वपूर्ण भूमिका सदा याद की जायेगी।

लाल बहादुर वर्मा : एक बहुमंजिली प्रतिभा

कितना कुछ वे अभी भी कर रहे थे। दरअसल जब वे कहते थे कि आजकल कुछ नहीं कर रहे हैं तो भी वे कुछ न कुछ कर रहे होते थे। जब वे जाड़ों में दक्षि ण और गर्मि यों में पहाड़ों में कहीं एक-दो माह रहते तो कोई न कोई पांडुलिपि बनकर उनके साथ वाप स लौटती थी। साथ ही वे उस ठौर पर दोस्त बनाकर और बढ़ाकर आते थे।

डॉ. जीवन सिंह मेहता को हम सबका अन्तिम सलाम

एक सम्वेदनशील नागरिक, समर्पित वनविद, चिरयात्री, प्रयोगकर्ता, खिलाड़ी, स्पष्टवादी; पहाड़, चिया, वन अधिकारी संस्था आदि के आधार; उत्तराखण्ड तथा हिमालय सम्बन्धी अधिकांश विषयों पर अपनी आधिकारिक टिप्पणी और लेख लिखने वाले; स्पष्ट वक्ता, जरूरतमंदों की चुपचाप मदद करने वाले और लोक जीवन में अत्यन्त रुचि रखने वाले पता नहीं और क्या क्या थे वे।

अलविदा त्रेपन सिंह चौहान!

त्रेपन की छवि मेरे मन-मस्तिष्क में ‘विश्व प्रसिद्ध साहित्यकार हावर्ड फास्ट के नायक ‘स्पार्टाकस’ की तरह है जो कि सामाजिक-राजनैतिक सत्ता के अन्याय के विरुद्ध हमेशा आन्दोलित रहता है। ‘स्पार्टाकस’ का निजी जीवन भी संघर्ष की सेज पर है परन्तु अपने स्वाभाविक स्वभाव से उसके व्यक्तित्व में हर समय मनमोहक मुस्कान, प्रेम और खुशियों के गीत समाये रहते हैं।

पहाड़ के बारे में कुछ!