बहुत उदास मन से यह दुःखद सूचना दे रहा हूं। दिनांक 20 अप्रैल 2021 की दोपहर के लगभग 2 बजे हमारे प्रिय चिरयुवा 89 साल के डॉ. जीवन सिंह मेहता (28 नवम्बर 1932-20 अप्रैल 2021) किसी और दुनिया की अनन्त यात्रा में निकल गये। एक सम्वेदनशील नागरिक, समर्पित वनविद, चिरयात्री, प्रयोगकर्ता, खिलाड़ी, स्पष्टवादी; पहाड़, चिया, वन अधिकारी संस्था आदि के आधार; उत्तराखण्ड तथा हिमालय सम्बन्धी अधिकांश विषयों पर अपनी आधिकारिक टिप्पणी और लेख लिखने वाले; स्पष्ट वक्ता, जरूरतमंदों की चुपचाप मदद करने वाले और लोक जीवन में अत्यन्त रुचि रखने वाले पता नहीं और क्या क्या थे वे। अभी डा. रघुबीर चन्द के देहान्त के बाद उनके कम से कम पाँच फोन आये। वन पंचायत नियमावली, ऋषिगंगा-धौली आपदा और अभी जारी दावानल पर लगातार बात करते रहे। चिन्ता जताते रहे। कितने ही और पक्ष होंगे जिनको उनके प्रशंसक और मित्र जानते होंगे।
वे पहाड़ संस्था के शुरू से ही आधार थे। 2004 तथा 2014 की अस्कोट-आराकोट यात्राओं के अलावा अधिकांश कार्यकलापों में हिस्सेदारी ही नहीं मार्गदर्शन भी करते थे। हम सबकी बहुत चिन्ता करते थे वे। हमारे लिये वे एक बहुत प्यारे शिक्षक, संरक्षक और साथी एक साथ थे। पारदर्शी और प्रचुर प्यार से भरे हुये।
28 नवम्बर, 1932, को श्रीमती गंगादेवी तथा श्री रासबिहारी सिंह के घर जन्म लेने वाले डॉ. जीवन सिंह मेहता ने अल्मोड़ा तथा रानीखेत से प्रारम्भिक शिक्षा प्राप्त की। आगरा विश्वविद्यालय से स्नातक और स्नातकोत्तर डिग्रियाँ लेकर बाद में आपने कुमाऊँ विश्वविद्यालय से ‘उत्तराखण्ड की वन सम्पदा’ विषय पर डाक्टरेट की उपाधि की। एफ.आर.आई. तथा रिमोट सैन्सिंग संस्थान से भी आपने प्रशिक्षण लिया।
35 साल तक वन विभाग में अनेक पदों पर रहते हुये और विशेष रूप से राज्य वनवर्धनिक के रूप में आपने वन सम्पदा, उसके पर्यावरण के अन्य घटकों से अन्तर्सम्बन्ध्, संरक्षण तथा विस्तार का असाधारण कार्य किया। अनेक रिपोर्ट, सर्वेक्षण तथा लहलहाते वृक्षारोपण आपके योगदान को बताते हैं।
सरकारी विभाग में होकर भी मिशनरी भाव से कार्य करने वाले डॉ. मेहता उत्तराखण्ड को गहरे रूप से जानने वाले बहुत कम लोगों में से थे। एक लाख पचास हजार किमी. पैदल चल
चुके डॉ. मेहता ने कैलास मानसरोवर, रूपकुण्ड, सहस्रताल जैसे कठिन क्षेत्रों की ही नहीं, विभिन्न ग्लेशियरों, दर्रों और तालों की यात्रा भी की। 2004 के अस्कोट-आराकोट अभियान में वे सबसे अध्कि उम्र के पदयात्री रहे।
अवकाश प्राप्त करने के बाद आपकी रचनात्मकता में और वृद्धि हुई तथा कोसी नदी के उपजलागम खुलगाड़ को संसाध्न सम्पन्न बनाने में आपका सर्वाधिक योगदान रहा। विभिन्न विश्वविद्यालयों, अकादमियों, संगोष्ठियों में निरन्तर व्याख्यान देने वाले डॉ. मेहता ‘ग्रीन हिमालय क्लब’ के माध्यम से बांज वनों के विस्तार में भी जुटे थे। आप कुमाऊँ विश्वविद्यालय सीनेट के सदस्य थे और अल्मोड़ा इण्टर कालेज प्रबन्ध्न समिति के अध्यक्ष भी।
सतत सक्रिय, पहाड़ों को हरा-भरा करने के लिये बेचैन, चिर यात्री और चिर युवा डॉ. मेहता को हम सबका अन्तिम सलाम।
पहाड़ के संपादक व संस्थापक शेखर पाठक प्रसिद्ध इतिहासकार व लेखक हैं। वे कुमाऊँ विश्वविध्यालय में इतिहास के प्रोफेसर के रूप में कार्यरत थे। वे नेहरू मेमोरियल म्यूज़ीयम, नई दिल्ली व इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ एडवांस्ड स्टडी, शिमला के फ़ेलो भी रहे हैं। पहाड़ों के गहन जानकार, उन्होंने पहाड़ों को समझने से लिए कई यात्राएँ की एयर लगभग सभी असकोट आरकोट यात्राओं में भागीदारी की।