लारी बेकर – आम लोगों का असाधारण वास्तुविद
आज से कोई 70 वर्ष पूर्व लारी का मन जिस सोर की वादी में रम गया था, वह वास्तव में बेहद सुंदर थी! दूर-दूर तक काश्त किये खेतों के इर्द-गिर्द उतरते पर्वत ढलानों में बस गये छितरे बनैले गाँव, मध्य में छोटा-सा कस्बा और घाटी में दो फलकों में बहती सर्पिल जल धाराएं। यहां की जलवायु, वनस्पतियां और हिमाच्छादित शिखर श्रृंखलाओं के बदलते नजारे लारी को अपने यूरोप के देहात के स्पर्श देते रहे।