मृतप्राय नदी – महाकाली का डेथ वारंट रोकने का प्रयास

कुछ लोग कहते हैं- महाकाली के मरने की रफ्तार भागीरथी और भिलंगना से कई गुना तेज होगी। क्योंकि, यहां प्रतिरोध ना के बराबर है। इसलिए यहां प्रतिरोध की संभावनाओं को तलाशने और इसे ताकतवर बनाने के लिए यह पुस्तिका अहम दस्तावेज साबित होने वाली है। 

जीव विज्ञानी, पर्यावरणविद और पर्वतारोही इमैन्यूएल थिओफिलस की हालिया प्रकाशित पुस्तिका- मृत प्राय नदी, कथित विकास की बलि चढ़ने जा रही काली या महाकाली नदी को बचाने की जददोजहद का अहम प्रयास है। पुस्तिका को पढ़कर आप यकीनन यह कहेंगे कि, उत्तराखंड में भारत और नेपाल की राजनैतिक सीमा (सांस्कृतिक और ऐतिहासिक नहीं) बनाने वाली महाकाली नदी को दोनों सरकारों ने मिलकर फांसी की सजा सुना दी है। नदी से बिजली, पानी, पर्यटन और कथित विकास की सम्पूर्ण क्षमताओं को मिलकर निचोड़ने के लिए जिस तेजी से फाइलें दौड़ रही हैं, किसी भी दिन महाकाली का डेथ वारंट जारी कर दिया जाएगा। कुछ लोग कहते हैं- महाकाली के मरने की रफ्तार भागीरथी और भिलंगना से कई गुना तेज होगी। क्योंकि, यहां प्रतिरोध ना के बराबर है। इसलिए यहां प्रतिरोध की संभावनाओं को तलाशने और इसे ताकतवर बनाने के लिए यह पुस्तिका अहम दस्तावेज साबित होने वाली है।

कुछ लोग कहते हैं- महाकाली के मरने की रफ्तार भागीरथी और भिलंगना से कई गुना तेज होगी। क्योंकि, यहां प्रतिरोध ना के बराबर है। इसलिए यहां प्रतिरोध की संभावनाओं को तलाशने और इसे ताकतवर बनाने के लिए यह पुस्तिका अहम दस्तावेज साबित होने वाली है। 

कवर समेत साठ पेज की यह पुस्तिका प्रस्तावित पंचेश्वर बांध के नफा-नुकसान का तथ्यपूर्ण विश्लेषण करती है। यह इस दैत्याकार बांध के खिलाफ उठने वाली आवाजों को तर्क, ताकत और तेवर तो देगी ही, प्रधानमंत्री का ड्रीम प्रोजेक्ट बताकर बांध बनाने में हो रही देरी पर छाती पीटने वालों को भी दोबारा इस पर राय बनाने को प्रेरित करेगी।

थिओ की पुस्तक बताती है कि, हिमालय की सदानीरा नदियों को बांधने के लिए सरकारें जो तर्क देती आयी हैं, वही पंचेश्वर परियोजना में भी दोहराए जा रहे हैं। बांध से पर्यावरण, जनजीवन, संस्कृति, इतिहास, परंपराओं के नुकसान को कमतर आंका गया है। बांध को विकास का प्रतीक बताकर हिमालय के इस सुदूर क्षेत्र को हमेशा के लिए डुबो दिया जाएगा। बांध का पानी यूपी, नेपाल की तराई के अलावा दिल्ली से गुजरात तक की प्यास बुझाने के काम आएगा। बांध की बिजली, शहरियों की सड़ी गर्मी से निजात दिलाने के लिए ऐसी, पंखे चलाएगी। उद्योगों के पैसा उगलने की रफ्तार कई गुना तेज होगी।

पुस्तिका बताती है कि, आर्थिक तौर पर यह बांध कितना महंगा बैठेगा, इसे बेहद कम आंका गया है। इस क्षेत्र में आठ रिक्टर स्केल से बड़े विनाशकारी भूकंप के आसन्न खतरे को भी गंभीरता से नहीं लिया गया है। धार्मिक स्थल डूबने, भारत-नेपाल के परस्पर सामजिक और सांस्कृतिक रिश्तों पर इसका असर पड़ने जैसी बातों की पुस्तिका पड़ताल करती है। उम्मीद की जानी चाहिए कि, पुस्तिका की अगली कड़ी में नेपाल में इस बांध के खिलाफ लामबंद हो रहे लोगों, संगठनों के अनुभव, अध्ययनों को इसमें शामिल कर महाकाली को मारने की तैयारी के प्रतिरोध को सशक्त बनाने का प्रयास किया जाएगा।

पुस्तिका के अहम अंश

1. पंचेश्वर के बारे में

महाकाली नदी पर संसार के सबसे बड़े बांध के निर्माण का शुरुआती काम चल रहा है। महाकाली के सुनहरे रेतीले तट, नदी पार हजार साल पुराना गाँव, उकु और नदी किनारे के अन्य 134 गाँव, दसियों हजार घर, सुरम्य सीढ़ीदार खेत, प्राचीन देवालय, मीठे पानी के सोते, वन और तमाम वन्यता के साथ 80 किमी तक फैला पूरा इलाका जलमग्न हो जाएगा। यहां यहाँ खड़े होकर दरअसल आप एक मृतप्राय नदी को देख रहे हैं। संरक्षण संबंधी विज्ञान में मृतप्राय उस प्रजाति को कहा जाता है, जो उसके अपने पर्यावरण द्वारा निष्कासित कर दी गई हो और जिसके लिए विलुप्ति से बच सकने की कोई संभावनाएं शेष न रह गई हों।

2. पंचेश्वर बहुउद्देशीय बांध परियोजना

भारत और नेपाल के बीच सीमा का निर्धारण करने वाली नदी, महाकाली पर एक विशालकाय बांध समूह के निर्माण की योजना लंबे समय से बना रहे हैं। पंचेश्वर बांध, उसका 80 किमी तक फैला हुआ जलाशय और भूमिगत बिजली घर इसका हिस्सा हैं। बहाव की दिशा में 25 किमी नीचे की ओर एक और 95 मीटर ऊंचे रूपालीगाड़ बांध का जलाशय और बिजलीघर बनेगा। यह बिजली उत्पादन के दौरान पंचेश्वर बांध से निकलने वाले अनियमित जल प्रवाह को नियंत्रित कर रूपालीगाड़ में भी बिजली बनाने एवं सिंचाई के लिए पानी को नहरों की ओर मोड़ने हेतु नियंत्रक का काम करेगा। पूरी तरह बन जाने पर 311 मीटर ऊंचा पंचेश्वर बांध दुनिया का सर्वाधिक ऊंचा बांध होगा। ये दोनों बांध कुल 5040 मेगावाट बिजली का उत्पादन करेंगे। यह उत्पादन क्षमता भारत के सबसे बड़े जल विद्युत बांध की क्षमता से दोगुनी और परमाणु बिजलीघर की उत्पादन क्षमता की ढाई गुनी होगी। 116 वर्ग किमी क्षेत्र में फैले पंचेश्वर बांध का जलाशय समूचे उपमहाद्वीप का, अब तक का, सबसे गहरा जल भण्डार होगा। बाढ़ नियंत्रण और दो देशों के सुदूर मैदानी इलाकों में सिंचाई की बढ़ती जरुरतें इसके अतिरिक्त उददेश्य हैं। 

3. भूकंप का खतरा

पंचेश्वर बहुद्देशीय बांध परियोजना हिमालय के भीतरी इलाके में ऐसी जगह पर है जो भूगभीय भ्रंशों से भरी है। इस क्षेत्र को भूकंपीय खतरों की संभावनाओं के नजरिये से सर्वाधिक खतरनाक माने जाने वाले सिस्मिक जोन- 5 में रखा जाता है। पंचेश्वर बांध परियोजना की डीपीआर में ही संकेत है कि,  बांध स्थल के निकटवर्ती क्षेत्र में 86 रिक्टर स्कूल का भूकंप आ सकता है।

4. हिमनद झीलों का खतरा

महाकाली और उसकी सहायक नदियों के उदगम पर भारत और नेपाल के 40 हिमनद झीलें हैं, जिनमें से 33 केवल गोरी घाटी में हैं। यह भी जानकारी में है कि, हिमनदों के पिघलने के दौरान इन झीलों की संख्या और आकार में कुछ ही दशकों में वृद्धि हो जाती है। समय-समय पर ऐसी झीलों ने भयावह बाढ़ों को जन्म दिया है।

5. प्रभाव आंकलन रिपोर्ट पर सवाल

परियोजना के प्रभाव-आकलन रपट में वैप्काॅस द्वारा दी गई प्रजाति-सूची में एक ओर जहां जलग्रहण-क्षेत्र की जैव-विविधता के केवल एक छोटे से हिस्से का ही उल्लेख है वहीं दूसरी ओर ऐसे पौधों और पशुओं को शामिल किया गया है जो यहाँ होते ही नहीं। वैप्काॅस बरसों से अपने धोखेबाज पर्यावरणीय प्रभाव आकलनों एवं निम्नस्तरीय अध्ययनों के लिए कुख्यात है।

6. गुजरात तक जाएगा पानी

महाकाली-शारदा के पानी को 50 मीटर चैड़ी और 08 मीटर गहरी सीमेंट कंक्रीट की विशाल नहर द्वारा 380 किमी दूर, दिल्ली से थोड़ा ऊपर की ओर, यमुना में जल-आपूर्ति को बढ़ाने के लिए ले जाया जाना है। दिल्ली के बाद ये नहरें यमुना के पश्चिम की ओर मुड़कर राजस्थान और अंततः गुजरात पहुाँचेंगी और यह पानी साबरमती नदी में समा जाएगा। काली से बिलकुल वैसे ही यह पानी चुराया जायेगा जैसे नर्मदा नदी से चुराया गया।

7. विस्थापन की मार

पंचेश्वर बांध परियोजना 31000 परिवारों को अपनी पैतृक जमीनों और घरों से निर्वासित करेगी। भारत के 114 गाँव और नेपाल के 25 गाँव डूब जाएंगे। 116 वर्ग किमी जंगल एवं कृषि भूमि जिसका दो तिहाई भारत में है, जलमग्न हो जाएगी।

8. एक सभ्यता की जलसमाधि

पंचेश्वर बांध का जलाशय भारत के 770 और नेपाल के 102 मंदिरों एवं धर्मस्थलों को नष्ट करेगा। इस परियोजना को केंद्र और राज्य की भारतीय जनता पार्टी की सरकार की सक्रिय स्वीकृति प्राप्त है। यह उस एक राजनैतिक दल के लिए अनूठी बिडम्बना है जिसने सोमनाथ से लेकर 1992 में अयोध्या के मंदिरों के लिए बहुसंख्यक हिंदुओं को लामबंद किया।


लेखकः इमैन्यूएल थिओफिलस
हिंदी अनुवादः रमेश पाण्डे
सम्पादनः उमा भट्ट एवं शेखर पाठक
डिज़ाइन, आशुतोष उपाध्याय
प्रकाशकः पहाड़, तल्ला डांडा, नैनीताल 

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