हिमालय से एक पत्र – इंदिरा गांधी के नाम

पर्यावरण,पारिस्थितिकी के साथ-साथ आज जलवायु परिवर्तन सम्बन्धी बहस के इस दौर में सस्टेनेबल मिलेनियम डेवलपमेंट गोल को तेजी से प्राप्त करने की चर्चा विश्व पटल में जारी है। एक ओर दुनियां की अधिकाँश व्यवस्थायें पारिस्थितिकी तंत्र को नष्ट करने में लगी हैं, दूसरी ओर यही व्यवस्थायें तेजी से हो रहे जलवायु परिवर्तन पर चिंता जाहिर करने से नहीं चूक रही हैं।

अमेज़न से लेकर आस्ट्रेलिया के जंगलों में लगी आग हो या फिर अमरीका सरीखी शक्तियों का वैश्विक समझोतों  से हाथ खींच लेना, ताकतवर समाजों के इस दोहरे चरित्र को सामने रख रहा है। हिमालय से लेकर कन्याकुमारी अंतरीप तक में जलवायु परिवर्तन और पारिस्थितिकी संकट को हाल के वर्षों में तेजी से बढ़ते देखा जा सकता है। केदारनाथ से लेकर केरल में आई बाढ़ ने नई चुनौती पैदा की है। आज हिमालय से लेकर केरल और रेगिस्थान से लेकर वनवासी क्षेत्रों के लोग भी बदलते पर्यावरण को लेकर चिंतित होने लगे हैं।

कश्मीर से पूर्वी हिस्सों तक हिमालय की नदियों का उफनना, घाटियों को तोड़ते फोड़ते हजारों टन मिटटी को बहा कर ले जाना, यह कमोबेश हर साल का परिद्रश्य बनता चला जा  रहा है। हाल के वर्षों में  अपनाई गई नीतियों ने इस प्रक्रिया को और अधिक त्वरा दी है।

जलवायु परिवर्तन संकट के इस दौर में हिमालय के संवेदनशील और नाजुक पर्यावरण को लेकर समूची दुनियाँ अपनी रूचि दिखा रही है। लेकिन इतने से काम नहीं चलने वाला। दरअसल पर्यावरण को अलग से ठीक नहीं किया जा सकता है। पारिस्थितिकी और जलवायु परिवर्तन के इस नाजुक दौर में हिमालय के पर्यावरण संकट को समग्रता में समझने की बेहद जरुरत है। असलियत को सम्पूर्णता में समझने और सामने लाये बगैर इस तंत्र की बात करना बेइमानी ही होगा।

इस बार हम हिमालयी पर्यावरण के विविध पक्षों को छूने का प्रयास कर रहे हैं। हिमालय में बनाये जा रहे बढ़े  बाँध हमेशा समाज और सत्ता के बीच संघर्ष का विषय रहे है। इधर महाकाली नदी पर प्रस्तावित पंचेश्वर बाँध की चर्चा जोरों पर है। पिछली सदी के आठवें दशक में पर्यावरण कार्यकर्ता श्री चंडी प्रसाद भट्ट ने हिमालय में बड़ी परियोजनाओं और पर्यावरण संकट को लेकर चेताया था। हिमालय की पर्यावरणीय चुनौतियों के विमर्श को हम एक बार फिर से सामने लाना चाहते हैं। अड़तीस वर्ष पहले १५ मार्च १९८२ को श्री चंडी प्रसाद भट्ट द्वारा भारत के प्रधानमंत्री को लिखे गए पत्र से इसकी शुरुआत कर रहे है।

चंडी प्रसाद भट्ट चर्चित सर्वोदयी कार्यकर्ता एवं चिपको आन्दोलन के आधार स्तंभों में से एक है। हिमालय के सामाजिक आर्थिक एवं पर्यावरणीय सरोकारों से गहराई से जुड़े है। दशौली ग्राम स्वराज मंडल गोपेश्वर के माध्यम से आपने गाँवों के दीर्घ स्थायी एवं सतत विकास मॉडल  का अभिनव प्रयोग किया है। हिमालयी पर्यावरण की गहरी समझ रखते है। विभिन्न पद्म पुरुस्कारों के अलावा आपको इंदिरा गाँधी एकता पुरुस्कार से भी नवाजा गया है .

15 मार्च 1982 को चंडी प्रसाद भट्ट द्वारा प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गांधी को लिखा गया पत्र

माननीया,

आन्तरिक हिमालय में, सीमान्त जनपद चमोली के भौगोलिक दृष्टि से अत्यन्त संवेदनशील क्षेत्र जोशीमठ से बद्रीनाथ धाम के बीच विष्णु प्रयाग जल विद्युत परियोजना का निर्माण किया जा रहा है। यह योजना इतनी ऊंचाई पर अपने प्रकार की पहली योजना है। इस जल विद्युत परियोजना के अन्तर्गत अलकनन्दा का जल लामबगड़ से रोककर उसे एक सुरंग द्वारा जोशीमठ के सामने हाथी पर्वत शिखर तक ला कर लगभग एक हजार मीटर का गिराव देकर जोशीमठ नगर की जड़ पर एक विशाल शक्ति गृह बनाकर उसमें डाला जाना है। इसके लिए प्रारम्भिक कार्य जोरों पर चल रहा है।

यद्यपि विषय विशेषज्ञों ने इसक निर्माण में भौगोलिक व अन्य तकनीकी पहलुओं पर विचार कर लिया होगा। फिर भी यहाँ पर्यावरण प्रेमियों को इसके निर्माण पर गहरी चिन्ता है जो आप तक पहुंचना आवश्यक है। जिन बिन्दुओं पर चिन्ता की जा रही है, संक्षेप में निम्न हैं:

  • मध्य हिमालय का क्षेत्र भूगर्भिक दृष्टि से अत्यधिक संवेदनशील है। और यहाँ के पहाड़ बहुत कच्चे हैं। जिसमें भूस्खलन और भूक्षरण तेजी से जारी है। प्रति वर्ष इसकी गति व मात्रा निरन्तर बढ़ती जा रही है।
  • योजना के लिए चुना गया क्षेत्र अधिकांशतः खड़े ढाल वाले हिमांच्छादित पर्वतों से धिरा है जहां बड़े पैमाने पर हिमखण्डों का स्खलन होता रहता है।
  • इस योजना के लिए मोटर सड़कों का निर्माण (बाई पास) जोशीमठ नगर के निचले हिस्से में होना है तथा मुख्य निर्मांण जोशीमठ के सामने की पहाड़ी पर होना है। भूवैज्ञानिकों के अनुसार जोशीमठ नगर एक भूस्खलन पर बसा हुआ है। विशेष रूप से विस्फोटकों के प्रयोग के विरू़द्ध कड़ी चेतावनी दी गयी है।
  • अब इस योजना में विश्व प्रसिद्ध फूलों की घाटी से उद्गमित भ्यूंडार नदी (पुष्पावती नदी) का जल भ्यूंडार गांव के पास से करीब 7 (सात) किलोमीटर लम्बी एक अन्य सुरंग से उत्तर पश्चिम की ओर ले जाकर हनुमान चट्टी में अलकनन्दा से मिलाने का प्रस्ताव है। इससे गोविन्द घाट से फूलों की घाटी तक कुछ हिस्सों में मोटर सड़कों का निर्माण व अन्य बाहरी हलचल होगी। जिससे फूलों की घाटी के वातावरण में अप्रत्याशित परिवर्तन सम्भावित है।
  • इस पूरे कार्य से निकलने वाला मलवा अलकनन्दा नदी के तट को ऊपर उठा देगा और बाढ़ की विभीषिका की सम्भावना बढ़ जायेगी।
  • योजना के निर्माण में हजारों की संख्या में श्रमिक लगंेगे व उनकी ऊर्जा व अन्य आवश्यकताओं का भार इस क्षेत्र पर पड़ेगा और वनस्पति, वृक्ष व वन्य जन्तुओं का तेजी से ह्नास होगा। इस क्षेत्र की वनस्पति का पिछले वर्षों में कई ऐजेंसियों द्वारा विनाश किया जा रहा था। इसके प्रतिरोध में भ्यूंडार गांव की महिलाओं ने वृक्षों को बचाने के लिए वर्ष 1978 में चिपको आन्दोलन चलाया था ।
  • योजना को मूल स्थल तक जाने के लिए हेलंग के पास से मारवाड़ी तक एक बाइपास का निर्माण किया जा रहा है, जिससे भूस्खलन पर बसे जोशीमठ को भूस्खलन व धंसाव का खतरा तो है ही, बद्रीनाथ जाने के लिए बाद में इसी मार्ग का प्रयोग होगा और जोशीमठ का पर्यटक, ऐतिहासिक, सांस्कृतिक व व्यापारिक महत्व समाप्त हो जायेगा।
  • इस विशाल योजना के निर्माण में विस्फोटकों का अत्यधिक मात्रा में प्रयोग होगा। इससे उन कच्चे पहाड़ो पर दुष्प्रभाव पड़े बिना नहीं रहेगा।

उपर्युक्त बिन्दुओं के अतिरिक्त अनेक बाह्य व आन्तरिक प्रभाव उभर कर सामने आ सकते हैं। जिससे कोई नयी विपत्ति देश को भोगनी पड़ेगी । अतः इस परियोजना के सभी पक्षों पर विचार हेतु पर्यावरण, भूगर्भ, वनस्पति, एवलान्च व मौसम विज्ञान के विशेषज्ञों की एक समिति का गठन किया जाना चाहिए, जो विस्तृत अध्ययन से देश को यह आश्वासन दे सकें कि इस परियोजना के निर्माण से देश को जो लाभ होगा, नुकसान उससे अधिक नहीं होंगे और तभी योजना पर आगे कार्य आरम्भ करना चाहिए।

इसमें दो मत नहीं हो सकते कि देश की ऊर्जा के साधन बढ़ाने की नितान्त आवश्यकता है और पर्वतीय क्षे़त्रों से उद्गमित नदियों से इसका उत्पादन किया जाना चाहिए। किन्तु यह देखना श्रेयकर होगा कि इसका मूल्य प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप में हमें इतना न चुकाना पड़ जाय जितना उससे लाभ न हो। हिमालय के संदर्भ में इसे अधिक गहराई में सोचने की इसलिए भी आवश्यकता है क्योकि हिमालय इस देश के मौसम का नियन्त्रक है तथा यहां से कई नदियां निकलती हैं, जिनसे राष्ट्र की आर्थिक व्यवस्था जुड़ी है। हिमालय की नदियों की तीव्र प्रवाही जल शक्ति का उपयोग ऊर्जा के उत्पादन में किया जाना तो चाहिए किन्तु हिमालय क्षेत्र में बड़ी विद्युत परियोजनाओं का मोह हमें छोड़ना पड़ेगा। छोटी-छोटी जल विद्युत परियोजनाओं की एक श्रंखला का निर्माण कर विद्युत की बड़ी परियोजनाओं के कुल योग से भी अधिक विद्युत प्राप्त की जा सकती है। अतः इस ओर हमें ध्यान केन्द्रित करना चाहिए।

हमें इस बात की बहुत प्रसन्नता और सन्तोष है कि हम लोगों द्वारा चलाये गये वृक्ष आन्दोलन चिपको आन्दोलन-की आपने प्रशंसा की और उसे नैतिक समर्थन दिया। पर्यावरण के प्रति आपकी चिन्ता और जागरूकता के बारे में भी हमें समाचार पत्रों में पढ़ने सुनने को मिलता है। अतः हमें विश्वास है कि हिमालय की अस्थिरता व विश्वविख्यात फूलों की घाटी के प्रति लग रहे प्रश्न चिन्ह पर आपकी दृष्टि जायेगी और इसके सभी पहलुओं पर विचार करने के बाद ही आप इसके निमाण की स्वीकृति देंगी।

मुझे पिछले दिनों नैरोबी में विश्व ऊर्जा सम्मेलन में चिपको आन्दोलन के प्रतिनिधि के रूप में भाग लेने का सुअवसर मिला। इस सम्मेलन में वनों पर दबाव करने पर जोर दिया गया था। सम्मेलन में यह भी बताया गया कि चीन, कनाडा आदि देशों ने अपने यहां नदी नालों पर लघु विद्युत परियोजनाओं की विशाल श्रंखला खडी़ की है। 70 किलोवाट से 1 मेगावाट वाली लघुविद्युत परियोजनाओं की संख्या केवल चीन में ही लगभग अस्सी हजार है।

हमारे देश के पर्वतीय भागों में भी कई लघु जल विद्युत परियोजनायें हैं। चमोली जनपद में इस समय 200 किलोवाट से लेकर 750 किलोवाट तक की क्षमता वाली लगभग 10 इकाइयां हैं । आगे इसके विस्तार की पर्याप्त सम्भावनायें हैं। नदी नालों के तेज जल प्रवाह से विद्युत उत्पादन की दो इकाइयां अपने अल्प साधनों से चिपको आन्दोलन में भाग लेने वाली दो संस्थाओं ने प्रायोगिक रूप में आरम्भ की है। यदि इन्हें आधुनिक टैक्नालोजी मिले तो इसका व्यापक विस्तार हो सकता है।

अतः मैं यह निवेदन करना चाहूंगा कि तीव्र प्रवाहिनी अलकनन्दा तथा गंगा व उसकी सहायक नदियों पर बनने वाली विशाल विद्युत परियोजनाओं के बजाय छोटी-छोटी सैकड़ों विद्युत उत्पादन इकाईयों को प्रोत्साहित किया जाय । इससे हिमालय को भी क्षति नहीं होगी व पर्यावरण पर भी प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा। तथा विकेन्द्रीकृत व्यवस्था से प्राप्त विद्युत उत्पादन भी हो सकेगा।

सादर,
चंडी प्रसाद भट्ट

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