गिरिजा पांडे

इतिहास अध्येता हैं। पिछले तीन दशकों से आधुनिक भारत के सामाजिक- आर्थिक और सांस्कृतिक इतिहास पर शोधरत हैं। हिमालय के सांस्कृतिक नृतत्त्व के साथ साथ सामाजिक पारिस्थितिकी और विज्ञान के इतिहास अध्ययन पर विशेष रूचि है. पहाड़ के सम्पादन से जुड़े है। वर्तमान में उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय में प्राध्यापक हैं

सविनय अवज्ञा, पेशावर कांड और गढ़वाल राइफल्स: सामूहिक चेतना की समद्ध विरासत

भारत की आजादी के संघर्ष में 90 साल पहले 1930 के अप्रैल माह की 23 तारीख को पेशावर के किस्साखानी बाज़ार में हुई एक घटना भारतीय जन की सामूहिक समझ और राष्ट्रीय एकता की एक ऐसी मिसाल पेश करती है जो आज भी अपने अतीत के गौरवशाली पलों को गहराई से समझने के लिए प्रेरित करती है. आजादी की लड़ाई के अलग-अलग पहलुओं, खासकर राजनीति की गांधीवादी रणनीति को देखें तो हमें 23 अप्रैल 1930 को पेशावर में घटित घटना की व्यापकता और सामूहिक स्वीकार्यता में इसके गहरे और दूरगामी प्रभाव साफ़ झलकते हैं.

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